युद्ध असरित यूक्रेन के विन्नित्सिया से बाहर निकलने के कोशिश में एक हफ्ते तक मार्ग में फंसे रहने और रोमानिया की सीमा पर बर्फीले तूफान का सामना करने के बाद घर लौटकर मेडिकल विद्यार्थी शोएब सलीम अतर ने राहत की सांस ली है. लेकिन, घर लौटने के बावजूद अतर को यूक्रेन में फंसे हिंदुस्तान के अन्य विद्यार्थीों की चिंता सता रही है.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद 24 फरवरी की रात विन्नित्सिया से बाहर निकले 21 सालीय अतर ने पीटीआई/को बताया, ‘‘अल्लाह का फजल है कि मैं लौट इनकमा.’’ अतर बुखारेस्ट से बृहस्पतिवार को मुंबई पहुंचे विशेष विमान से घर लौटे हैं. विन्नित्सिया नेशनल यूनिवर्सिटी में तीसरे साल के विद्यार्थी अतर ने घर लौटने के लिए 27 फरवरी की टिकट 22 फरवरी को बुक करायी थी.
रूस ने यूक्रेन के विद्रोही क्षेत्रों लुहान्स्क और दोनेस्क को स्वतंत्र प्रदेश के रूप में मान्यता देने की घोषणा 22 फरवरी को की थी. पड़ोसी कर्नाटक प्रदेश के बेंगलुरु के रहने वाले अतर ने बताया कि यूनिवर्सिटी के डीन ने विद्यार्थीों से वापस नहीं लौटने की अपील करते हुए कहा था कि ‘‘बाहर खामोशिपूर्ण हालत हैं.’’ विद्यार्थी ने कहा, ‘‘यूक्रेन स्थित हिंदुस्तानीय दूतावास ने परामर्श जारी किया है, लेकिन उससे कुछ खास सहायता नहीं मिली.’’ उन्होंने कहा कि हिंदुस्तानीय दूतावास ने विद्यार्थीों से कहा कि वे बिल्कुल जरूरी होने पर ही यूक्रेन छोड़ें.
अतर ने दावा किया, ‘‘यूक्रेन के यूनिवर्सिटीों में 100 फीसदी मौजूदि जरूरी है. यूनिवर्सिटी ने भी हमें जाने की अनुमति नहीं दी. जब हमने यूक्रेन में हो रहे हमलों को लेकर अपनी चिंता जतायी तो, यूनिवर्सिटी प्रशासन को लगा कि हम औनलाइन कक्षाएं लगाना चाहते हैं.’’ लेकिन उस समय तक अतर ने यूक्रेन छोड़ने का फैसला कर लिया था.
उन्होंने कहा, ‘‘हमने पोलैंड की सीमा पर स्थित लावीव से टिकट बुक किया था, ताकि रूस द्वारा हमला किए जाने की स्थिति में भी हम सुरक्षित रहें. लेकिन तभी हमें एयरलाइन से संराष्ट्र इनकमा कि उड़ान रद्द कर दी गई है.’’ बाद में यूक्रेन गवर्नमेंट ने अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया और राष्ट्र के भीतर से उड़ान भरने की हमारी आशाओं पर पानी फिर गया.
इसके साथ ही अतर और यूक्रेन छोड़ने वाले अन्य लोगों के लिए सुरक्षित घर वापसी का संघर्ष शुरू हो गया. यूक्रेन पर 24 फरवरी को रूस का हमला शुरू होने के बाद विन्नित्सिया के हवाई क्षेत्र में रूसी विमानों को उड़ान भरते हुए देखा जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘‘हवाई हमले के बारे में हमें हकीकतेत करने के लिए सायरन बजता था.(सायरन की आवाज सुनकर) हम भागते और सुरक्षित स्थान शरण लेते. दिन में करीब सात-आठ बार ऐसा होता था. हम भागकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचते और तीन घंटे बाद जब लौटते तो फिर सायरन की आवाज सुनकर भागना पड़ता. और फिर हम वापस सुरक्षित स्थान तक भागते. दिन भर हम यही भाग-दौड़ करते रहते.’’ इन परेशानीओं से दो-चार होने के बाद हिंदुस्तान, मध्य एशिया और अफ्रीका के विद्यार्थीों ने यूक्रेन छोड़ने का फैसला लिया.
लेकिन विन्नित्सिया छोड़ना सरल नहीं था. अतर ने दावा किया कि कीव स्थित हिंदुस्तानीय दूतावास के कर्मचारी सहायता के लिए बमुश्किल ही मौजूद थे. उनकी कम्पलेन है, ‘‘राष्ट्र से बाहर कैसे निकलें, इस विषय में हिंदुस्तानीय दूतावास की ओर से कोई दिशा-आदेश नहीं था.
विन्नित्सिया से बाहर निकलने और रोमानिया के साथ निकटी सीमा तक पहुंचने के लिए हमने स्वयं से बस किराए पर लिया. हिंदुस्तानीय दूतावास बमुश्किल हमारी सहायता के लिए मौजूद था. वह हमारे फोन कॉल का भी उत्तर नहीं दे रहे थे.