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गुजरात बॉर्डर के गांवों में घट रही हिंदू आबादी: स्थानीय लोग बोले- रोजगार और सुविधाएं ही नहीं, 23 गांवों से भास्कर की ग्राउंड रिपोर्ट – Gujarat News

सीमावर्ती इलाके में हिंदुओं की आबादी काफी कम हो गई है। घरों में ताले लगे हैं और गांव खाली हैं।

गुजरात के कच्छ जिले की सीमा पाकिस्तान को छूती है। इसलिए यह क्षेत्र काफी संवेदनशील है। कुछ समय पहले कच्छ के 25 से ज्यादा धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजा था। उन्होंने दावा किया कि कच्छ के सीमावर्ती इलाके में हिंद

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पीएम मोदी को यह पत्र राजपूत क्षत्रिय समाज के सामाजिक संगठन, विभिन्न क्षेत्रों के पाटीदार, ब्रह्म और लोहाना समाज के अलावा, श्री माता की मढ़ जागीर ट्रस्ट, वर्मानगर में बीएपीएस द्वारा संचालित श्री स्वामीनारायण संस्कार धाम, लखपत और गुरुद्वारा श्रीगुरु नानक दरबार लखपत साहब जैसे ट्रस्टों और संस्थानों ने भेजा है।

कच्छ जिले से पलायन के पीछे असली कारण क्या हैं? जिन गांवों से भारत-पाकिस्तान सीमा कुछ किलोमीटर दूर है। वहां अब कैसे हालात हैं? देश की सुरक्षा के लिए यह किस तरह से खतरनाक है?…

इन सवालों के जवाब जानने के लिए ‘दिव्य भास्कर’ की टीम ने कच्छ से लगे 23 गांवों की ग्राउंड रिपोर्टिंग की।

इन गांवों में एक भी हिंदू नहीं रहता

गांव का नामहिंदुमुस्लिमनाना भीटारा0878भद्रावांढ0678मोटा गुगरीयाणा0112नाना गुगरीयाणा0112मेडी049भंगोडीवांढ0104

6 गांवों में एक भी हिंदू परिवार नहीं रहता हमारी टीम ने गांवों में जनसंख्या की पुख्ता जानकारी के लिए चुनाव आयोग की 6 जनवरी 2025 को प्रकाशित मतदाता सूची का भी विश्लेषण किया। इससे पता चलता है कि इन 23 गांवों में किस धर्म के कितने मतदाता हैं। 23 गांवों की वोटर लिस्ट देखने पर पता चला कि 17 गांव ऐसे हैं, जहां हिंदुओं की आबादी बहुत कम है। 6 गांवों में तो एक भी हिंदू परिवार नहीं रहता। अधिकांश गांव ऐसे हैं, जहां से वर्षों पहले हिंदू परिवार पलायन कर चुके हैं। कोई विदेश तो कोई देश के दूसरे हिस्से में बस गया है।

कच्छ का मोटा दिनारा गांव।

मोटा दिनारा गांव में सिर्फ 1 हिंदू परिवार कच्छ के खावड़ा इलाके के मोटा दिनारा गांव में रहने वाले मंगलभाई वेलाभाई ने कहा, गांव में मंदिर परिसर के आसपास हिंदुओं के 30 घर थे। अब एक ही घर बचा है। हमारे गांव में रामदेवपीर का मंदिर कम से कम 500 साल पुराना माना जाता है। जो लोग यहां वर्षों से रह रहे हैं वे रूद्रमाता और सरसपुर गांव में जाकर बस गए हैं। क्योंकि, वहां रोजगार है और मूलभूत सुविधाएं हैं। कभी-कभी लोग गांव आते हैं।

वेलाभाई ने आगे बताया कि 2001 में आए भूकंप में लोगों को घर ढह गए थे। इसके बाद सैकड़ों लोगों ने घरों की मरम्मत नहीं करवाई। कुछ तो घर ऐसे ही हालत में छोड़कर चले गए। कुछ परिवारों ने माताजी के मंदिर के साथ-साथ रामापीर के मंदिर के लिए भी जगह दी। मंदिर छोटा था जिसके निर्माण को 2-3 साल तक बढ़ाया गया और बड़ा बनाया गया। जब हमारे गांव के मंदिर में कोई कार्यक्रम होता है, माताजी का कार्यक्रम होता है तो वो लोग आते हैं।

बिग दिनारा समूह ग्राम पंचायत के 6 गांवों में एक भी हिंदू परिवार नहीं रहता।

बिग दिनारा समूह ग्राम पंचायत के 6 गांवों में एक भी हिंदू परिवार नहीं रहता।

भूकंप के बाद 40 परिवारों ने किया पलायन अमीर हसन बड़ी दिनारा समूह ग्राम पंचायत के सरपंच हैं। उन्होंने कहा, हमारे गांव की आबादी करीब 5 हजार है। इसमें हिंदू समुदाय के 20-25 घर हैं। 2001 में आए भूकंप के बाद करीब 40 परिवार पलायन कर गए थे। उन लोगों को भुज के आगे पलारा में रोड टच में जमीन मिली।

वहीं, बिग दिनारा समूह ग्राम पंचायत में 6 गांव हैं। 2011 में इन गांवों की आबादी 6 से 7 हजार के करीब थी। भूकंप के बाद साल 2001 में बड़े दीनार छोड़ने वाले लोग कभी वापस नहीं लौटे। अब तो इन 6 गांवों में एक भी हिंदू परिवार नहीं रहता। तीज-त्योहार पर कुछ लोग अपने गांव आते रहते हैं।

शेह गांव में कुल 160 मतदाता हैं। जिसमें सिर्फ 8 वोटर हिंदू और 152 मुस्लिम वोटर हैं।

शेह गांव में कुल 160 मतदाता हैं। जिसमें सिर्फ 8 वोटर हिंदू और 152 मुस्लिम वोटर हैं।

शेह गांव में सिर्फ 8 वोटर हिंदू कच्छ के कोटेश्वर को देश का अंतिम छोर माना जा सकता है। कोटेश्वर के निकट अनेक बिखरे हुए गांव हैं। जहां से भारत-पाकिस्तान सीमा महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर है। यहां मोबाइल नेटवर्क मिलना भी मुश्किल है। कोटेश्वर से पूर्व दिशा में लगभग नौ किलोमीटर की दूरी पर शेह गांव है। मतदाता सूची के अनुसार इस गांव में कुल 160 मतदाता हैं। जिसमें सिर्फ 8 वोटर हिंदू और 152 मुस्लिम वोटर हैं।

शेह समेत आसपास के गांवों में 15-20 साल पहले तक हिंदुओं की अच्छी खासी आबादी थी।

शेह में रहने वाले टीचर हरेशभाई गावित ने बताया कि गांव के बच्चे यहां प्राथमिक शिक्षा तो पा रहे हैं, लेकिन पांचवीं कक्षा पास करने के बाद उनके लिए आगे की पढ़ाई करना मुश्किल होता है। क्योंकि यहां से स्कूल 9 किमी दूर है। सरकार की परिवहन योजना है, जिसके तहत हर महीने के करीब 450 रुपए मिलते हैं। लेकिन निजी वाहन इतने किफायती नहीं हैं।

कुछ बेटियां जीएमडीसी की बस से वर्मानगर जाने लगी हैं। जो करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है। गांव में पानी भी एक बड़ी समस्या है। वहीं, यदि कोई बीमार पड़ता है, तो उसे नारायण सरोवर या वर्मानगर जाना पड़ता है। अगर मामला गंभीर है तो 150 किलोमीटर दूर भुज जाना पड़ता है। रोजगार के भी साधन कम हैं। लोगों को रोजगार के लिए मुंद्रा, मांडवी, अब्दासा, नखत्राणा जाना पड़ता है। इसके चलते गांव के लोग दूसरे शहरों में बसने लगे हैं।

सुठारी में हिंदुओं की आबादी 2500 के करीब थी, जो अब 1800 के करीब बची है।

सुठारी में हिंदुओं की आबादी 2500 के करीब थी, जो अब 1800 के करीब बची है।

सुठारी गांव में 60 हिंदू परिवार नारायण सरोवर के तलाटी तरूणभाई जोशी ने कहा कि रोजगार और मूलभूत सुविधाएं न होने के चलते लोहाना और ब्राह्मण समुदाय ने नारायण सरोवर से पलायन करना शुरू कर दिया है। लोग भुज और नखत्राणा में जाकर बस रहे हैं। करीब 15 साल पहले तक यहां हिंदुओं की आबादी 2500 के करीब थी, जो अब 1800 के करीब बची है। इसमें 60 प्रतिशत हिंदू, 40 प्रतिशत मुस्लिम हैं। आसपास के गांवों से मुसलमान यहां रहने आने लगे हैं।

वहीं, सुठारी गांव में 60 हिंदू परिवार रहते हैं। सुठारी की कुल आबादी करीब 3500 है। जैनियों की संख्या केवल 15 है। इसके अलावा यहां 60 घर हिंदू परिवारों के हैं, जिनकी संख्या पहले 150 थी। पलायन का मुख्य कारण सुथारी में कृषि के अलावा रोजगार की कमी है।

लखपत इलाके में हिंदू समुदाय के सिर्फ आठ घर ही बचे हैं।

लखपत इलाके में हिंदू समुदाय के सिर्फ आठ घर ही बचे हैं।

कनेर गांव 300 हिंदुओं का घर है लखपत समूह ग्राम पंचायत की सरपंच शुग्राबेन ने बताया कि लखपत इलाके में हिंदू समुदाय के सिर्फ आठ घर ही बचे हैं। जबकि बगल के कनेर गांव में करीब 300 हिंदू रहते हैं। 2001 के भूकंप के बाद से लखपत गांव से भी पलायन शुरू हो गया था। लखपत इलाके से लोग मुंबई, सूरत जैसे शहरों में जाकर बस गए हैं।

लखपत में कार्यरत हिंदू शौर्य समिति ने कुछ समय पहले पलायन का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था। संगठन से जुड़े एक कार्यकर्ता ने कहा, यह सीमावर्ती इलाका है। यहां अक्सर देश विरोधी गतिविधियां होती रहती हैं। ड्रग्स पकड़े जाने से लेकर घुसपैठ तक की घटनाएं होती रहती हैं। इससे पहले साल 1998 में भी यहां से आरडीएक्स पकड़ा गया था।

हिंदू शौर्य समिति के सदस्य।

हिंदू शौर्य समिति के सदस्य।

हिंदू बड़े शहरों की ओर अधिक स्थानांतरित हो रहे हैं

हिंदू शौर्य समिति का कहना है कि देश के इस सुदूर इलाके में मुख्य समस्या रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य की है। रोजगार बहुत कम होने के कारण हिंदू आबादी समय-समय पर पलायन करती रहती है। इलाके खाली होने के चलते राष्ट्र-विरोधी गतिविधियां भी बढ़ रही हैं। माता मधतो दोलतपार, दयापार, विदानी, गडुली और पनांध्रो क्षेत्र में वर्षों पहले हिंदुओं की जनसंख्या अधिक थी।

गादुली में पाटीदार समाज की आबादी उस समय 5500 थी। फिलहाल गांव में सिर्फ 250 लोग रहते हैं। तालुका में ठक्कर, लोहाना, ब्राह्मण, पुरोहित समाज का पलायन भी बहुत तेजी से हो रहा है।हिंदू शौर्य समिति का दावा है कि मुस्लिम भी पलायन करते हैं लेकिन आसपास के गांवों में शिफ्ट होते हैं, लेकिन हिंदू समाज की आबादी अहमदाबाद, नडियाद, सूरत राजकोट, मुंबई में स्थानांतरित हो रही है।

जीएमडीसी और वन भूमि पर मुस्लिम समुदाय का कब्जा हिंदू शौर्य समिति का कहना ​​है कि जीएमडीसी और वन भूमि पर मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया था। जिसके कारण आसपास के लोगों को वहां से पलायन करना पड़ रहा है। यहां जमीन कब्जाने की कई शिकायतें भी दर्ज की जा चुकी हैं।

एकतानगर राजपूत क्षत्रिय समाज भी उन संगठनों में शामिल है, जिन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र मे कहा था कि अधिक संख्या में हिंदू ही पलायन कर रहे हैं।

समाज के अध्यक्ष जीतेंद्रसिंह झाला ने भास्कर से कहा कि यहां व्यवसाय-रोजगार नहीं है। पहले यहां जीएमडीसी की लिग्नाइट खदानें थीं, जो अब बंद हो गई हैं। रोजगार बंद हो गया है। शिक्षा-स्वास्थ्य की सुविधाएं शून्य हैं। इसी के चलते अधिकांश हिंदू आबादी यहां से पलायन कर रही है।

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