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हाई कोर्ट प्रशासनिक तौर पर शीर्ष अदालत के अधीन नहीं, परमादेश नहीं कर सकते जारी

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दोहराया कि हाई कोर्ट प्रशासनिक तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के अधीन नहीं है। शीर्ष अदालत को हाई कोर्ट के प्रशासनिक क्षेत्र को प्रभावित करने वाले निर्देश देने का अधिकार नहीं है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्य कांत की पीठ ने कहा, हम हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को परमादेश (मेंडमस) जारी नहीं कर सकते। हाई कोर्ट प्रशासनिक रूप से सुप्रीम कोर्ट के अधीनस्थ नहीं हैं।
शीर्ष अदालत बॉम्बे हाई कोर्ट के उस प्रशासनिक सर्कुलर को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा थी, जिसमें कोविड-19 मामलों में उछाल को देखते हुए अदालत के कामकाज के समय को दोपहर 12 बजे से दोपहर तीन बजे तक सीमित कर दिया गया था। एक्टिविस्ट घनश्याम उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में कहा गया था कि हाई कोर्ट द्वारा जारी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के कारण हाई कोर्ट की प्रधान पीठ केवल नाम के लिए काम कर रही है, जिससे वादियों और वकीलों को कठिनाई हो रही है। याचिका में कहा गया था कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों को खतरे में डाला जा रहा है और यह बड़ी चिंता व सार्वजनिक महत्व का मामला है।शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान पीठ को सूचित किया गया कि हाई कोर्ट पहले ही सामान्य कामकाजी घंटों में वापस आ गया है। इसलिए पीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मसले को संबोधित कर लिया गया है। पीठ ने कहा, हम नहीं जानते कि बार कैसे प्रतिक्रिया देगा और स्थानीय स्थितियां क्या हैं। आपकी शिकायत काफी हद तक पूरी हो गई है। अब आगे के मुद्दों के लिए हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से संपर्क कर सकते हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट के जज के रूप में अपना न्यायिक करियर शुरू करने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पुणे जैसे दूरदराज के स्थानों से कितने कर्मचारी हाईकोर्ट में काम करते हैं। उन्होंने कहा, बॉम्बे हाई कोर्ट में कर्मचारी बहुत दूरी तय करके आते हैं। वे डेक्कन क्वीन द्वारा पुणे से आते हैं और लौटते हैं। मेरे निजी सचिव सुबह छह बजे घर से निकलते थे और सुबह 9:30 बजे अदालत पहुंचते थे। उसी तरह उन्हें घर लौटने में रात के नौ बज जाते थे।

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