ब्रिटेन ने कहा है कि हिंदुस्तान के साथ संबंध बढ़ाने पर ध्यान देने के साथ-साथ अपनी-अपनी हिंद-प्रशांत रणनीतियों के क्रियान्वयन में समन्वय के लिए अमेरिका और ब्रिटेन प्रतिबद्ध हैं.
इस हफ्ते की आरंभ में हिंद-प्रशांत पर इनकमोजित ‘‘उच्च-स्तरीय परामर्श’’ में दोनों गवर्नमेंटों के अधिकारियों ने इस क्षेत्र में आपसी तालमेल और योगदान को व्यापक और गहरा करने का संकल्प लिया.
रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच की जा रही कई मीटिंगों में से एक इस वार्ता में ‘‘चाइना के साथ प्रबन्धगत प्रतिस्पर्धा की चुनौती’’ का सामना करने की तैयारियों का भी आकलन किया गया.
परामर्श मीटिंग के बाद शुक्रवार को जारी संयुक्त बयान में कहा गया, ‘‘आगामी महीनों में अमेरिका और ब्रिटेन प्रशांत क्षेत्र के द्वीप समूह के साथ साझेदारी में निवेश करने के लिए मिलकर कार्य करेंगे. आसियान (दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का संगठन) की केन्द्रीयता का समर्थन करने तथा आसियान और उसके मेम्बर देशों के साथ ठोस योगदान को आगे बढ़ाने तथा हिंदुस्तान के साथ संबंध बढ़ाने के लिए मिलकर कार्य करेंगे.’’
इसमें कहा गया, ‘‘अमेरिका और ब्रिटेन के अधिकारी दोनों राष्ट्रों की हिंद-प्रशांत नीति के क्रियान्वयन के समन्वय के लिए प्रतिबद्ध हैं, जैसा कि इसकी एकीकृत समीक्षा में निर्धारित किया गया है.
स्वच्छ ऊर्जा पहल और दुनिया की बेहतरी के एजेंडा के हिस्से के रूप में जरूरी और उभरती प्रौद्योगिकियों पर योगदान, आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा आर्थिक दबाव को दरकिनार करने के लिए साथ मिलकर कार्य करने का फैसला हुआ.’’
सोमवार और मंगलवार को वार्ता के लिए अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व हिंद-प्रशांत नीति के समन्वयक कर्ट कैंपबेल ने किया तथा इसमें विराष्ट्र विभाग, रक्षा विभाग और देशीय सुरक्षा परिषद के प्रतिनिधि शामिल थे. ब्रिटेन के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व उप देशीय सुरक्षा सलाअधिकारार डेविड क्वारे ने किया और इसमें ब्रिटेन गवर्नमेंट के प्रतिनिधि शामिल थे.
कुछ दिनों पहले ब्रिटेन की विराष्ट्र मंत्री लिज ट्रूस ने ब्रिटेन की संसद की विराष्ट्र मामलों की समिति (एफएसी) को बताया था कि रूस पर हिंदुस्तान की निर्भरता का मुकाबला करने के लिए हिंदुस्तान के साथ घनिष्ठ आर्थिक और रक्षा संबंधों को आगे बढ़ाना होगा.
लंदन में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज (आईआईएसएस) में दक्षिण एशिया के सीनियर फेलो राहुल रॉय-चौधरी ने कहा कि यह ‘‘हिंदुस्तान के रक्षा उद्योग की ओर ब्रिटेन के एक महत्वाकांक्षी रुख में बदलाव का प्रतीक है.