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40 साल पुराने मामले में रिटायर्ड SP को जेल: भुज कोर्ट ने मारपीट के केस में 3 महीने की सजा सुनाई, शिकायतकर्ता की हो चुकी हौ मौत – Gujarat News

गुजरात में भुज सेशन कोर्ट ने 40 साल पुराने एक मामले में कच्छ के तत्कलीन पुलिस अधीक्षक कुलदीप शर्मा और उनके साथ अधिकारी गिरीश वासवदा को दोषी करार दिया। इस मामले में दोनों तत्कालीन अधिकारियों को तीन महीने जेल की सजा सुनाई गई है। वहीं, दो अन्य सह-आरोपी

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शिकायतकर्ता का हो चुका है निधन इस मामले में शिकायतकर्ता इभला सेठ का निधन हो चुका है। सुनवाई के दौरान उनके बेट इकबाल मंधारा न्यायालय में मौजूद रहे। उन्होंने न्यायालय के आदेश का स्वागत किया और कोर्ट में मौजूद प्रियजनों को मिठाई बांटकर खुशी का इजहार किया।

ब्लू शर्ट में शिकायतकर्ता इभला सेठ के बेटे इकबाल मंधारा।

अब जानिए पूरा मामला यह मामला साल 1984 का है। उस दौरान दिवंगत कांग्रेस नेता मंधार अब्दुल्ला हाजी इब्राहिम, जिन्हें इभाला सेठ के नाम से भी जाना जाता है, ने शिकायत दर्ज कराई थी कि… वे और तत्कालीन विधायक खराशंकर जोशी, मांडवी विधायक जयकुमार संघवी, गभुभा जडेजा, शंकर गोविंदजी जोशी आदि नेताओं के साथ एक मामले को लेकर एसपी कार्यालय पहुंचे थे। इस दौरान तत्कालीन एसपी कुलदीप शर्मा ने उनका अपमान किया। उनके साथ गाली-गलौज की और अपने साथी अधिकारियों को बुलाकर उनकी पिटाई करवा दी थी। मारपीट में इभला सेठ घायल हो गए थे। इस मामले में भुज की मुख्य न्यायिक अदालत में एसपी और चार आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।

फैसले के बाद कोर्ट परिसर के बाहर पटाखे भी फोड़े गए।

फैसले के बाद कोर्ट परिसर के बाहर पटाखे भी फोड़े गए।

अंतिम सुनवाई 28 जनवरी को हुई इसके बाद वर्ष 2020 में शिकायतकर्ता के वकील एमबी सरदार की मृत्यु के बाद आरएस गढ़वी इस मामले में शिकायतकर्ता के लिए मुख्य वकील के रूप में पेश हुए थे। इससे पहले इस मामले में चार आरोपी थे, जिनमें से बीएन चौहान और पीएस बिश्नोई की चल रही कार्यवाही के दौरान निधन हो चुका था। इसलिए बाकी के दो आरोपियों कुलदीप शर्मा और गिरीश वासवदा पर आरोप तय किए गए। आरोपियों के बयान के बाद बीती 28 जनवरी को अंतिम सुनवाई हुई। वहीं, आज (10 फरवरी) 40 वर्षों के बाद इस मामले का फैसला सुनाया गया।

सरकारी वकील आरोपी का बचाव नहीं कर सकते: कोर्ट जब सरकारी वकील ने आरोपी कुलदीप शर्मा और अन्य आरोपियों का बचाव किया तो अधिवक्ता एम.बी. सरदार ने तर्क दिया कि सरकारी वकील का काम अभियोजन पक्ष का मामला साबित करना है, न कि आरोपी का बचाव करना। फिर, भले ही अभियुक्त जिला पुलिस प्रमुख ही क्यों न हो, जब वह अभियुक्त के रूप में सामने आता है, तब भी वह अभियुक्त ही होता है और हर अभियुक्त की तरह उसे भी स्वयं या अपने वकील के माध्यम से अपना बचाव करना होता है। अदालत ने इस पर सहमति जताई और कुलदीप शर्मा तथा अन्य आरोपियों ने निजी वकील नियुक्त कर अपना बचाव किया।

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