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नेशनल स्वीमिंग में बिना दोनों हाथों के जीते 11 मेडल 7 साल की उम्र में करंट की वजह से हारे हाथ पैर से लिखकर पढ़ाई

15 साल के अब्दुल कादिर इंदौरी के दोनों हाथ नहीं हैं। आठ साल में करंट में हाथ गंवाने वाले कादिर को अपना सारा काम पैरों से ही करना पड़ता है। 8 साल पहले जब अब्दुल ने अपने दोनों हाथ खो दिए, तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि अगले कुछ सालों में अब्दुल बिना हाथों के भी अपने परिवार को गौरवान्वित करेगा। बिना हाथ के भी अब्दुल बेधड़क पानी में कूद जाता है। तैरते समय ऐसा लगता है जैसे हाथों की जरूरत ही नहीं है।

अब्दुल के तैराकी कौशल का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने अब तक तैराकी में 3 स्वर्ण और 8 रजत पदक जीते हैं। फिलहाल अब्दुल 25 मार्च से शुरू हो रहे नेशनल पैरा स्विमिंग टूर्नामेंट में हिस्सा लेने उदयपुर आया है। 21वें पैरा स्विमिंग नेशनल टूर्नामेंट में 23 राज्यों के 400 पैरा स्विमर्स हिस्सा ले रहे हैं। टूर्नामेंट 25 से 27 मार्च तक 12 अलग-अलग कैटेगरी में चलेगा।
हाईटेंशन लाइन ने दोनों हाथ छीन लिए थे
सात वर्षीय अब्दुल अपनी मौसी की मौत पर आठ साल पहले 2014 में भोपाल गया था। भोपाल में अपने भाइयों के साथ लुका-छिपी खेलते हुए कादिर छिपने के लिए छत पर चला गया। तभी ऊपर से गुजर रही हाईटेंशन लाइन ने अब्दुल को अपनी ओर खींच लिया। अब्दुल के दोनों हाथ चोटिल हो गए और बुरी तरह जल गए। अस्पताल ले जाने पर अब्दुल के दोनों हाथ काटने पड़े। इतनी कम उम्र में हाथ गंवाने के बावजूद अब्दुल ने कभी हार नहीं मानी। तैराकी के शौक को जुनून में बदल दिया। कुछ ही देर में अब्दुल ने तैराकी की बारीकियां सीख लीं और उसे अपना बना लिया। पैरा स्विमिंग में आज अब्दुल के नाम 11 मेडल हैं।
अब्दुल अपने पैरों से लिखते हैं, पैरालंपिक पदक एक सपना है
जो दैनिक कार्य आम लोग अपने हाथों से करते हैं, अब्दुल उस काम को अपने पैरों से करते हैं। हाथ गंवाने के कुछ दिनों बाद अब्दुल ने अस्पताल से ही अपने पैरों से लिखना शुरू कर दिया। आज अब्दुल अपने पैरों से लिखने, कंप्यूटर चलाने, मोबाइल इस्तेमाल करने, साइकिल चलाने जैसे सारे काम करता है। अब्दुल का सपना पैरालिंपिक में हिस्सा लेकर भारत के लिए मेडल लाना है।
हाथ नहीं होने से ऊपर से ट्यूब निकलती थी : कोच
अब्दुल के कोच राजा राठौड़ ने बताया कि हम तैराकी सिखाने के लिए राजी हो गए हैं, लेकिन जब अब्दुल ने स्वीमिंग पूल में आकर अपने कपड़े उतारे तो मैं हैरान रह गया. मैं समझ नहीं पा रहा था कि हाथ नहीं हैं, तैरना कैसे सिखाऊं। दूसरे कोच से भी बात की लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया, लेकिन अब्दुल के हौसले के आगे हर मुसीबत ने दम तोड़ दिया. पहले वह तैराकी सिखाने के लिए एक ट्यूब पहनता था, फिर ऊपर से ट्यूब निकल आती थी। बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। लेकिन 10 दिन बाद हमें यकीन था कि अब्दुल कहीं कूदेगा तो किनारे पर आ जाएगा।

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