गुजरात का गिर फॉरेस्ट ईको सेंसिटिव जोन विवाद के कारण सुर्खियों में है। समर्थन और विरोध में सभी लोगों के अपने-अपने तर्क हैं। ऐसे समय में अहमदाबाद की मशहूर सेप्ट यूनिवर्सिटी का एक शोध सामने आया है, जिसने गिर जंगल के बदलते हालात की तस्वीर पेश की है। शोध
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कुछ क्षेत्रों में वन क्षेत्र में कमी आई सेप्ट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मनुश्री भट्ट ने कहा कि भारत में 500 से अधिक वन्यजीव अभयारण्य हैं। लेकिन हमने अध्ययन के लिए गिरनार वन्यजीव अभयारण्य के 182 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को चुना, जो एशियाई शेरों के लिए पहचाना जाता है। हमने यह पता लगाने का प्रयास किया कि दो दशकों यानी 2000 से 2020 तक जंगल में क्या-क्या बदलाव हुए हैं। जंगल का हरित आवरण कितना बढ़ा और घटा है और इससे वन्यजीवों के जीवन में कितना बदलाव आया है।
भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में वन क्षेत्र बढ़ रहा है। हालांकि, कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि कुछ क्षेत्रों में वन क्षेत्र में कमी आई है। हालांकि, इसके कारणों के कोई ठोस सबूत नहीं है। वनक्षेत्र की पहचान के लिए हमने उपग्रह चित्रों का सहारा लिया गया। ताकि हम सैटेलाइट डेटा के आधार पर बिना किसी भेदभाव या पूर्वाग्रह के तथ्यों को जान सकें।’
प्रोफेसर मनुश्री भट्ट ने कहा, इस अध्ययन को करने में करीब दो महीने का समय लगा है, जिसके लिए पिछले 20 वर्षों का गिरनार वन्यजीव अभयारण्य का लैंडसैट उपग्रह डेटा लिया गया है। इस डेटा को प्राप्त करने के बाद सघन वन क्षेत्र, मैदानी क्षेत्र और जलग्रहण क्षेत्र की अलग-अलग गणना की गई।
नीचे दिए गए मानचित्र की सहायता से गिरनार वन्यजीव अभयारण्य में हुए परिवर्तनों को समझें
घने जंगल का क्षेत्रफल 11 फीसदी घटा अधिक गहन शोध के लिए 20 साल की अवधि को तीन भागों में बांटा गया। यानी साल 2000, साल 2010 और साल 2020। गिरनार वन्यजीव अभयारण्य के इस अध्ययन के परिणामस्वरूप यह पाया गया कि वर्ष 2000 में यहां 94 प्रतिशत घने जंगल थे। उसके एक दशक बाद यानी वर्ष 2010 में घने जंगल के अनुपात में 2 प्रतिशत की कमी आई। 2000 और 2020 के आंकड़ों की तुलना करने पर, दो दशकों में क्षेत्र में घने वन क्षेत्र में 11 प्रतिशत की गिरावट आई है।
हालांकि, इसका सीधा मतलब यह नहीं है कि गिर में वन क्षेत्र कम हो गया है। भारतीय वन सर्वेक्षण अपने आंकड़ों में वन क्षेत्र को तीन से चार भागों में बांटता है। जिसमें किसी क्षेत्र में घनत्व 10 प्रतिशत से 40 प्रतिशत के बीच हो, खुला वन क्षेत्र, सघन वन यानी 40 से 70 प्रतिशत घनत्व वाला क्षेत्र और अति सघन वन जो 70 प्रतिशत से अधिक घनत्व वाला हो।’
ऐसा होने के पीछे क्या कारण हैं? घने वन क्षेत्र में गिरावट के कारणों के बारे में प्रोफेसर मनुश्री भट्ट ने कहा- इस स्तर पर यह माना जा सकता है कि वर्षा की मात्रा कम हो गई है या इसका पैटर्न बदल गया है। यह बदलाव जलवायु परिवर्तन जैसे विभिन्न कारणों से हो सकता है। हालांकि, यदि घने जंगल को बढ़ाना है तो मानवीय हस्तक्षेप बढ़ाना पूरी तरह से संभव नहीं है। वर्षों पहले जूनागढ़ और उसके आसपास के इलाकों में खूब बारिश होती थी, जिसका पैटर्न अब बदल गया है। कुछ मामलों में मिट्टी की उर्वरता में बदलाव का भी वनों पर असर पड़ता है। यदि मिट्टी की उर्वरता सुधारनी है तो यह वर्तमान में संभव है।
गिर के वन्यजीवों पर इसका क्या असर? इस सवाल के जवाब में प्रोफेसर मनुश्री भट्ट ने कहा, अगर किसी क्षेत्र को घने जंगल से खुले जंगल में बदल दिया जाए तो तेंदुआ, हिरण जैसी कुछ प्रजातियों में अंतर आ सकता है। लेकिन एक अध्ययन से यह भी निष्कर्ष निकला है कि एशियाई शेर अब घने जंगल की बजाय खुले जंगल को प्राथमिकता दे रहे हैं। क्योंकि उनके लिए शिकार ढूंढना और उसका पीछा करना आसान होता है। तो ये बदलाव शेरों के लिए अच्छी बात कही जा सकती है। गिर के शेरों की आवाजाही और वन घनत्व में बदलाव में भी कई समानताएं दिख रही हैं।