राष्ट्र में हर वर्ष लाखों लोग गुर्दा रोग से पीड़ित मिल रहे हैं. इन रोगीों को समय पर जाँच और उपचार न मिले तो स्थिति क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) की ओर बढ़ती है. किडनी की कार्यशैली ठप होने से पहले परंपरागत चिकित्सा के जरिए इसे बचाया जा सकता है. वहीं, वेबिनार चर्चा सत्र में ढाई हजार से ज्यादा डॉक्टर शामिल हुए. बृहस्पतिवार को विश्व किडनी दिवस पर राजधानी में चिकित्सकों ने कहा कि उम्रष चिकित्सा के जरिए गुर्दा रोगियों को फायदा मिल सकता है.
उम्रष मंत्रालय के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ। डीसी कटोच ने कहा कि राष्ट्र में करीब एक करोड़ लोग हर वर्ष किडनी से जुड़ी बीमारियों से ग्रस्त मिल रहे हैं. इसमें आधुनिक जीवनशैली का एक बड़ा और गंभीर सहयोग है. खाद्य पदार्थों को लेकर लोगों को हकीकतेत रहना बहुत जरूरी है.
चिकित्सकों ने बताया कि गोक्षुर, वरुण, गुडुची, पुनर्नवा, कासनी, तुलसी, अश्वगंधा और आंवला जैसी औषधियों के सेवन से किडनी की कार्यप्रणाली में सुधार होता है. वेबिनार इनकमोजक एमिल फॉर्मास्युटिकल के कार्यकारी निदेसंदेह डॉ। संचित लज्जाा ने बताया कि फास्ट फूड खासतौर पर तले हुए क्रिस्पी की तरफ लोगों का अधिक झुकाव रहता है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि इन पर लगी काले रंग की क्रिस्पी परत गुर्दे को हानि पहुंचाती है.
समय पर नहीं मिल पाते हैं इशारा
मेदांता हॉस्पिटल के चिकित्सा निदेसंदेह डॉ। भीमा भट्ट ने कहा कि शुरू में किडनी बीमारियों के इशारा नहीं मिल पाते हैं, लेकिन कुछ महीने या फिर वर्ष बाद यह एक गंभीर बीमारी का रूप ले लेती है. उम्रर्वेद चिकित्सा के जरिए समय पर उपचार शुरू करने से गुर्दे बचाए जा सकते हैं.
वर्ष में कम से कम एक बार कराएं जाँच
एम्स में इनकमोजित एक अन्य कार्यक्रम में नेफ्भूमिकाॉजी विभागाध्यक्ष डॉ। एसके अग्रवाल ने कहा कि किडनी से जुड़ी बीमारियां किसी भी इनकमु में हो सकती हैं. अधिकतर मामलों में यह 40 या उससे अधिक इनकमु में देखने को मिल रही है. समय पर उपचार न मिलने से बीमारी बढ़ती जाती है. उन्होंने राय दी कि वर्ष में कम से कम एक बार लोगों को किडनी जाँच जरूर करानी चाहिए.