2024 के चुनाव को एक साल का समय अभी बाकी है लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने अभी से अपनी तैयारी शुरू कर दी है। पीएम मोदी ने बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए कहा था कि हमारी सरकार की नीतियों को मुस्लिम समाज के पसमांदा, बोहरा और शिक्षित लोगों तक ले जाना है। हमें समाज के सभी वर्गों को एक करके अपने साथ जोड़ना है।
वोट मिले या न मिले, हर वर्ग तक पहुंचने की कोशिश
पीएम नरेंद्र मोदी की अपील के बाद बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चे ने काम शुरू कर दिया है। देश की 60 लोकसभा सीटों की पहचान की गई है जहां मुस्लिम वोटरों का दबदबा है। इन वोटरों तक पहुंचने के लिए खास रणनीति भी बनाई गई है। बीजेपी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी के मुताबिक, पीएम ने समाज के सभी वर्गों से जुड़ने की अपील की है, भले ही कोई तबका पार्टी को वोट न दे। सिद्दीकी ने कहा कि हम मुस्लिम समुदाय के वोटरों को बीजेपी से जोड़ने की कोशिश करेंगे।
अल्पसंख्यक समुदाय तक पहुंचने का प्रयास
फरवरी के पहले सप्ताह में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होगी। बैठक में इस बात पर चर्चा होगी कि वंचित मुसलमानों को सरकारी लाभ कैसे पहुंचाया जाए। जिसमें देश की हर लोकसभा सीट से 5000 मुस्लिम कार्यकर्ताओं को जोड़ने पर जोर दिया जाएगा। मुस्लिम समुदाय के धार्मिक नेताओं और अल्पसंख्यक समुदाय तक भाजपा सरकार की नीतियों और कार्यों को पहुँचाने का प्रयास किया जाएगा।
दिल्ली में भी विशाल रैली होगी
भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा निकट भविष्य में स्कूटर रैलियां आयोजित करेगा। मार्च माह से शुरू होने वाले कार्यक्रमों में स्नेह सम्मेलन भी शामिल हैं। 60 विधानसभा में 3 लाख नए मुस्लिम कार्यकर्ता शामिल होने के साथ दिल्ली में एक विशाल रैली भी आयोजित की जाएगी। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश के पांच राज्यों में मुसलमान अत्यधिक प्रभावशाली मतदाता हैं। उत्तर प्रदेश में 19.26%, बिहार में 16.87%, बंगाल में 27.01%, असम में 34.22%, झारखंड में शांत जनसंख्या का 14.53% प्रतिशत है। जबकि गुजरात में मुसलमानों की आबादी 9.67% है।
कौन हैं पसमांदा मुसलमान?
जब चुनाव आता है, जब मीडिया में उसका विश्लेषण किया जाता है, तो कहा जाता है कि उस विधानसभा या लोकसभा सीट के लिए इस सीट पर पटेलों की संख्या इतनी है, ब्राह्मणों की संख्या इतनी है, राजपूतों की संख्या इतनी है। देश में कितनी सीटें दलित बहुल इलाकों की हैं, लेकिन कभी सुना है कि शेख, पठान या सैयद जैसी अलग-अलग कैटेगरी की कौन सी सीटें हैं? इस प्रकार मुस्लिम समुदाय के भीतर कई वर्ग हैं लेकिन सामाजिक रूप से तीन मुख्य हैं; अशरफ, अजलफ और अर्जल। अशरफ मुसलमानों को उच्च वर्ग माना जाता है जिसमें पठान अफगानिस्तान से जुड़े हैं जबकि मुसलमानों की सैयद श्रेणी पैगंबर मुहम्मद से जुड़ी है। इसके अलावा शेख भी इसी श्रेणी में आते हैं।
अजलाफ में मुख्य रूप से कारीगर वर्ग शामिल हैं, जिनमें दरजी, धोबी, लोहार आदि शामिल हैं। अर्जल मुसलमानों को सबसे नीची जाति माना जाता है, जिन दलितों ने इस्लाम धर्म अपना लिया है, वे भी अरजल में शामिल हैं। इस प्रकार अजलाफ और अर्जल दोनों मिलकर पसमांदा समूह बनाते हैं, पसमांदा का मूल अर्थ है ‘पीछे छूटे हुए लोग’। ऐसे लोग जो इस्लाम में परिवर्तित हो गए लेकिन अपना पेशा नहीं बदला, जिसके कारण सामाजिक और आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया।
गौरतलब है कि भले ही बीजेपी की छवि कट्टर हिंदुत्व की रही हो, पीएम मोदी खुद को एक विकास पुरुष के रूप में पेश करते हैं और अक्सर खुद को सभी धर्मों के समावेशी दिखाते हैं। कई बार उनके भाषण में मुस्लिम महिलाओं का जिक्र होता है, तब देखना ये है की पसमांदा मुसलमानो को अपनी तरफ करने के लिए बीजेपी कितनी और कैसे कोशिश करती है और कितनी सफल होती है।