सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमें कलश रखने के बाद भी आसपास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए। पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें, फिर एक परत मिट्टी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें।
जहां घट स्थापित करना है वहां एक पाट रखें और उस पर साफ लाल कपड़ा बिछाकर फिर उस पर घट स्थापित करें। घट पर रोली या चंदन से स्वास्तिक बनाएं। घट के गले में मौली बांधे। – अब एक तांबे के कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग पर नाड़ा बांधकर उसे उस मिट्टी के पात्र अर्थात घट के उपर रखें।
जटा नारियल के चारों तरफ कलश के मुख पर ही अशोक के कुछ पत्ते भी लगा दें। फिर नारियल को तिलक लगाकर उस पर लाल कपड़ा उढ़ाकर कलावे से बांध दें। घट स्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम रूप शैलपुत्री का ध्यान करें और माता रानी को लाल चुनरी, सिंदूर, अक्षत, फूल, फल आदि अर्पित करें। आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवतागण कलश में विराजमान हैं, कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें, अक्षत चढ़ाएं, फूलमाला अर्पित करें, इत्र अर्पित करें, नैवेद्य यानी फल-मिठाई आदि अर्पित करें। घटस्थापना या कलश स्थापना के बाद देवी मां की चौकी स्थापित करें। इसके बाद धूप दीप से मां की आरती करें।