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भारत की 2036 में होने वाले ओलिंपिक की मेजबानी की दावेदारी के लिए गांधीनगर स्थित राष्ट्रीय रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय (आरआरयू) में कुछ दिन पहले प्रथम अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक अनुसंधान सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें ओलंपिक पर अध्ययन करने वाले प्रतिष्ठित शोधकर्त

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इस सम्मेलन में क्या चर्चा हुई? यदि ओलंपिक भारत में आयोजित हो तो तैयारी कैसे की जाएगी? किस प्रकार के बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है? कितनी जनशक्ति की आवश्यकता है? भारत को अन्य देशों से क्या सीखना होगा? जैसे कई मुद्दों पर चर्चा हुई। इसी की जानकारी लेने के लिए दिव्य भास्कर ने भारत सेंटर ऑफ ओलंपिक रिसर्च एंड एजुकेशन के निदेशक डॉ. उत्सव चावरा से विशेष बातचीत की। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के प्रमुश अंश…

कुछ दिन पहले राष्ट्रीय रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी में तीन दिवसीय सम्मेलन हुआ था।

कुछ दिन पहले राष्ट्रीय रक्षा शक्ति यूनिवर्सिटी में तीन दिवसीय सम्मेलन हुआ था। इसमें कई ओएसआरसी (ओलंपिक अध्ययन अनुसंधान केंद्र), सदस्य ओलंपिक केंद्र, विदेशी विशेषज्ञ और आईओसी (अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति) के सदस्यों ने भी भाग लिया। यह आयोजन ओलंपिक की आधारशिला रखने जैसा था।

यह भारत और दक्षिण एशिया में ओलंपिक अनुसंधान और शिक्षा पर काम करने वाला पहला केंद्र है। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति का एक विंग अनुसंधान और अध्ययन पर काम करता है। यह पूरे विश्व में 71वां केंद्र है। पहले ऐसे 70 केंद्र थे। इस वर्ष पूरे विश्व में कुल 78 केंद्र खोले गए हैं, लेकिन भारत और दक्षिण एशिया में यह पहला केंद्र है। ओलम्पिक पारिस्थितिकी तंत्र 29 देशों में फैला हुआ है। लगभग 206 राष्ट्रीय ओलंपिक समितियाँ (एनओसी) हैं।

अन्य देशों से सीखने के लिए बहुत कुछ है: डॉ. उत्सव डॉ. उत्सव चावरा ने बताया- ओलंपिक के लिए क्या जरूरी है, भारत को किन मुद्दों पर काम करना चाहिए? क्या रणनीति अपनाई जा सकती है? इसी को लेकर विशेषज्ञों ने अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने उम्मीद जताई कि इससे भारत को लाभ होगा और हम 2036 में ओलंपिक को भारत में लाने के सपने को साकार कर सकते हैं।

डॉ. उत्सव आगे कहते हैं कि भारत इस समय एथलीटों के लिए बुनियादी ढांचे पर काम कर रहा है। वहीं, जब हम ओलंपिक की बात करते हैं तो आमतौर पर खेल ही दिमाग में आते हैं। लेकिन इस केंद्र का उद्देश्य खेल के साथ-साथ अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर भी ध्यान केंद्रित करना है। ओलंपिक को सिर्फ खेल के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसके हर पहलू पर काम किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि ओलंपिक का अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह का प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि ओलंपिक की मेजबानी करने वाले देशों के अध्ययनों के अनुसार, ओलंपिक का अर्थव्यवस्था पर बहुत नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है।

उन्होंने आगे कहा कि 2004 में एथेंस गेम्स, 2014 में शीतकालीन गेम्स और 2016 में रियो गेम्स का उनके देशों की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। पूरे देश की आर्थिक व्यवस्था और सरकारी खजाने पर बुरा असर पड़ा। इसका एक कारण यह है कि कभी-कभी ओलंपिक की लागत बहुत अधिक हो जाती है, लेकिन अब इसमें बदलाव आ गया है। 2024 में होने वाले पेरिस ओलंपिक बजट में कटौती का सबसे अच्छा उदाहरण हैं। खिलाड़ियों के लिए अधिक अस्थायी स्थल बनाए जा सकते हैं। अब इन्हें और बेहतर बनाया जा सकता है। ताकि लागत कम हो जाए।

सकारात्मक पक्ष यह है कि ओलंपिक की मेजबानी करने वाला देश वैश्विक मानचित्र पर आ जाता है। इसकी खबर वर्षों तक बनी रहेगी। खेलों में अनेक रिकार्ड बनते और टूटते हैं, तथा खिलाड़ी, नेता और दर्शक अनेक देशों से आते हैं। इसका सकारात्मक प्रभाव हो सकता है, लेकिन इसका उचित तरीके से उपयोग करना देश पर निर्भर है।

ओलंपिक के लिए प्लानिंग और रिसर्च जरूरी हाल ही में ओलंपिक समिति ने फैसला किया है कि खेल एक के बजाय एक से अधिक शहरों में खेले जाएंगे। इसके पीछे की वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि शोध के दौरान पाया गया कि ओलंपिक से आर्थिक लाभ कम है। प्रायः देश यह सोचकर इन आयोजनों का आयोजन करते हैं कि इससे पर्यटन और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन इसके लिए योजना बनाने की आवश्यकता होती है। बहुत सारे शोध की आवश्यकता है। एक रणनीतिक योजना की आवश्यकता है।

अहमदाबाद के अलावा अन्य कौन से शहर खेलों की मेजबानी कर सकते हैं, इसके जवाब में डॉ. उत्सव ने कहा कि इनमें वे शहर शामिल हो सकते हैं जहां परिवहन आसान है और बुनियादी ढांचा तैयार है। बहुत सारा परिवहन और व्यवस्था संबंधी कार्य करना होगा, क्योंकि दर्शकों या प्राधिकारियों के लिए एक से अधिक स्थानों तक यात्रा करना आसान होना चाहिए। यह अहमदाबाद, पुणे, दिल्ली, भोपाल, इंदौर, बेंगलुरु जैसे शहरों में हो सकता है।

यदि नया बुनियादी ढांचा दिल्ली या पुणे के बजाय सूरत और राजकोट जैसे शहरों में बनाया जाता है, तो इसकी लागत काफी बढ़ जाएगी। इसलिए, यदि कुछ खेलों के लिए बुनियादी ढांचा अन्यत्र स्थित है, तो उन्हें वहां आयोजित करना देश के लिए अच्छा होगा। शेष खेल अहमदाबाद में आयोजित किये जायेंगे।

कई देश ओलिंपिक की मेजबानी करने से डरते हैं, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था को झटका लगने का भी डर रहता है। छोटे देश ये जोखिम नहीं उठा सकते। ओलिंपिक खेलों के आयोजन के पिछले 30 सालों को देखें तो चीन ने बीजिंग ओलिंपिक-2008 में सबसे ज्यादा 4.43 लाख करोड़ रुपए खर्च किए थे।

इसके बाद जापान ने टोक्यो ओलिंपिक-2020 में 2.94 लाख करोड़ रुपए खर्च किए थे। अगर गुजरात को यह योजना बनानी है तो उसे केंद्र सरकार से बहुत बड़े फंड की जरूरत होगी। वर्ष 2024-25 के लिए गुजरात का वार्षिक बजट 2.99 लाख करोड़ रुपए है। ओलिंपिक के आयोजन में गुजरात के वार्षिक बजट के आसपास या उससे ज्यादा खर्च हो सकता है। ओलिंपिक के दौरान लाखों लोग इकट्ठा होंगे। उनके रहने के लिए व्यवस्थाएं करनी होंगी।

ओलम्पिक पर्यटकों को आकर्षित करेगा खेल पर्यटकों को काफी आकर्षित करते हैं। भारत इस समय एक लोकप्रिय गंतव्य है। गुजरात वैश्विक मानचित्र पर बना हुआ है। एथलीट, उनके परिवार और दर्शक खेलों में आते हैं। दूसरा, जब हमने विश्व कप की मेजबानी की तो आतिथ्य उद्योग को बड़ा बढ़ावा मिला। इसलिए, ऐसे आयोजन के लिए हमें बैंक्वेट हॉल, सार्वजनिक पार्क, होटल, मॉल, सभी की आवश्यकता होगी। जिसका अल्पावधि में हमारी अर्थव्यवस्था पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। लेकिन यदि इन्हें केवल ओलंपिक के लिए ही बनाया जाए तो ये नुकसानदेह होगा।

अन्य देशों द्वारा की गई गलतियों पर शोध जारी है डॉ. उत्सव ने आगे बताया कि आरआरयू ने हाल ही में एक क्रॉस-तुलनात्मक अध्ययन शुरू किया है। जिसमें, रियो ओलंपिक के बाद, हम अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए टोक्यो ओलंपिक और पेरिस ओलंपिक केंद्र के साथ सहयोग कर रहे हैं। हम आपको 2016 से 2024 तक तैयार किए गए खेलों की संख्या के बारे में जानकारी देंगे। हम यह पता लगाएंगे कि भारत इससे क्या सीख सकता है।

मैंने हाल ही में एक रिसर्च पूरी कर दिल्ली में प्रस्तुत की थी। मैंने रिसर्च में पाया कि रियो ने ऐसी गलतियां कीं, जिसके कारण उन्हें 10 साल बाद भी आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, जबकि पेरिस ने बहुत खूबसूरती से सफल योजना बनाई।

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‘ओलंपिक 2036’ के लिए अहमदाबाद की संभावनाएं ज्यादा: पेरिस ओलंपिक के कार्यकारी निदेशक का गुजरात दौरा, कहा- बिड के लिए सॉलिड प्लान की जरूरत – Gujarat News https://karnavati24news.com/news/27789 https://karnavati24news.com/news/27789#respond Tue, 28 Jan 2025 09:59:16 +0000 https://karnavati24news.com/?p=27789 पेरिस ओलंपिक एग्जीक्यूटिव लैंबिस कोन्सटेनटिनडिस चार दिनों की गुजरात यात्रा पर हैं। गांधीनगर के राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय में चार दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक अनुसंधान सम्मेलन हो रहा है। इसमें विभिन्न देशों के ओलंपिक से जुड़े लोग मौजूद हैं। इसी मौके पर दिव्य भास्कर ने पेरिस ओलंपिक एग्जीक्यूटिव लैंबिस कोन्सटेनटिनडिस से बात...

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पेरिस ओलंपिक एग्जीक्यूटिव लैंबिस कोन्सटेनटिनडिस चार दिनों की गुजरात यात्रा पर हैं।

गांधीनगर के राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय में चार दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक अनुसंधान सम्मेलन हो रहा है। इसमें विभिन्न देशों के ओलंपिक से जुड़े लोग मौजूद हैं। इसी मौके पर दिव्य भास्कर ने पेरिस ओलंपिक एग्जीक्यूटिव लैंबिस कोन्सटेनटिनडिस से बात कर जान

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भारत में ओलंपिक 2036 की मेजबानी की क्या संभावना है? लैंबिस ने कहा कि भारत विशाल संभावनाओं वाला देश है, क्योंकि भारत की जनसंख्या को देखते हुए हम भी यहां ओलंपिक कराने में रुचि रखते हैं। भारत की ओलंपिक की मेजबानी उसकी ठोस योजना और दीर्घकालिक खेल रणनीति पर निर्भर करती है। हालांकि संभावनाएं बहुत सकारात्मक हैं।

ओलिंपिक मेजबानी से अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है? यह उसके निवेश स्तर पर निर्भर करता है। इसमें बहुत सारे डवलपमेंट की आवश्यकता होती है, जिसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। लेकिन वह बुनियादी ढांचा काफी हद तक दीर्घकालिक रणनीति और ठोस योजना पर भी निर्भर करता है। हालांकि, अहमदाबाद में मौजूद व्यवस्थाओं को लेकर माहौल फिलहाल सकारात्मक है।

पर्यावरण पर क्या असर होता है? यह भी प्लानिंग पर ही निर्भर करता है। हमने पेरिस ओलंपिक में बहुत कम निर्माण कार्य किया। साथ ही सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल आधे से ज्यादा कम कर दिया था। इसके अलावा वहां रिन्युएबल एनर्जी का अरेंजमेंट किया गया था। इस तरह हमने कार्बन फ़ुटप्रिंट को 50 प्रतिशत से अधिक कम कर दिया था। ऐसी रणनीति अपनाने से आप पर्यावरण पर कम प्रभाव डाल सकते हैं। इनोवेटिव टेक्नोलॉजी का उपयोग करके, ओलंपिक क्लाइमेंट चेंज पर प्रभाव को रोक या कम कर सकते हैं। पेरिस ओलिंपिक इसका एक अच्छा उदाहरण है।

किसी देश को ओलिंपिक की मेजबानी से नुकसान उठाना पड़ा? सभी खेलों का लॉन्ग टर्म पॉजीटिव इफेक्ट होता है। मॉन्स्ट्रीयल, एथेंस या रियो को भले ही ओलिंपिक की मेजबानी से नुकसान हुआ हो, लेकिन उनके डोमेस्टिक प्रोडक्ट्स पर अच्छा असर हुआ। कुछ वस्तुएं देश पर निर्भर करती हैं। कुल मिलाकर, ओलंपिक के कारण सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होती ही है।

आपकी चार दिनों की गुजरात यात्रा का क्या मकसद है? हम चर्चा करेंगे कि ओलंपिक 2036 के लिए भारत की ओर से सफल बिड कैसे लगाई जाए और ओलंपिक मानकों के अनुसार यहां किस-किस तरह की सुविधाएं तैयार की जाएं।

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